जन्माष्टमी व्रत कथा और आरती हिन्दी में
श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार है। उनका जन्म अधर्म के नाश और धर्म की स्थापना के लिए हुआ था। जब पृथ्वी पर कंस और अन्य पापियों के अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गए तो भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया।
जन्माष्टमी भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। श्री कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था। गोकुल और वृन्दावन की गलियों में उनका बचपन बीता था। इसलिए मथुरा, वृन्दावन की जन्माष्टमी विश्व प्रसिद्ध है। दूर दूर से श्रद्धालु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाने मथुरा, वृन्दावन आते हैं। मंदिरों को भव्यता से सजाया जाता है।
जन्माष्टमी व्रत का महत्व
Krishna Janmashtami vrat significance:कहा जाता है कि एक जन्माष्टमी व्रत का फल हज़ारो एकादशी व्रत के समान पुण्य प्राप्त होता है। जन्माष्टमी को व्रतराज कहा गया है अर्थात यह सब व्रतों में से श्रेष्ठ है।
यह व्रत 100 जन्म के पाप से मुक्ति दिलाने वाला है। इस दिन किया गया जप अनंत फल प्रदान करता है।
जन्माष्टमी के दिन निर्जला व्रत किया जाता है इस दिन व्रत रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और मनोकामना पूर्ण होती है।
इस व्रत को निसंतान दम्पति संतान प्राप्ति के लिए , विवाहित स्त्रियां सुखी दाम्पत्य जीवन के लिए और अपने बच्चों की दीर्घ आयु के लिए और कुंवारी लड़कियां श्री कृष्ण जैसा वर या फिर मनवांछित वर की प्राप्ति के लिए जन्माष्टमी व्रत करती है।
इस दिन बाल गोपाल को पालने में बिठाते का विधान है। लड्डू गोपाल को दूध, दही, शहद, शक्कर ,घी से स्नान करवाया जाता हैं। लड्डू गोपाल को नये वस्त्र, आभूषण पहनाएंगे जाते है। उन्हें माखन मिश्री और मिठाई आदि का भोग लगाया जाता है। कृष्ण मंदिरों में श्री कृष्ण को 56 भोग लगाया जाता हैं।
जन्माष्टमी की व्रत कथा
Janmashtami vart katha in hindi :जन्माष्टमी भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। श्री कृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था।
श्री कृष्ण का जन्म मां देवकी और वसुदेव के पुत्र के रूप में कंस के कारागार में हुआ। कंस मां देवकी का भाई और श्री कृष्ण का मामा था।
मथुरा नगरी में राजा उग्रसेन का राज्य था लेकिन उनके अत्याचारी। पुत्र कंस ने उनको गद्दी से हटा कर जेल में बंद कर दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन गया।
कंस की बहन देवकी का विवाह जब वासुदेव से हुआ तब कंस उसकी विदाई कर रहा था तो यह भविष्यवाणी हुई की देवकी की आठवीं संतान तुम्हारा वध करेगी। कंस ने यह सुनकर देवकी की हत्या करनी चाही तो वासुदेव जी ने कंस से कहा कि तुम्हारा शत्रु तो हमारी आठवीं संतान है इसलिए तुम देवकी को मत मारो। मैं तुम्हें अपनी आठों संतान सौंप दूंगा। तुम उनके साथ जैसा मर्जी व्यवहार करना। इस तरह वासुदेव जी ने देवकी की जान बचा ली। कंस ने देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया।
कंस ने देवकी और वसुदेव के छः पुत्रों का वध कर दिया। देवकी के सातवें पुत्र को भगवान विष्णु के कहने पर योग माया ने मां रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया। उस बालक का नाम बलराम रखा गया।
श्री कृष्ण का जन्म भाद्रमास की अष्टमी तिथि को रोहणी नक्षत्र में हुआ था। घोर अंधकार भरी रात्रि में भगवान अपने चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए। उनका श्यामवर्ण रूप, कमल के समान नैत्र, चार भुजाएं जिनमें शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित था। पिताम्बर और गले में वैजन्ती माला, कानों में मकराकृत कुण्डल,मस्तक पर कीरीट और मुकुट सुशोभित था।
जब श्री कृष्ण बंदीगृह में प्रकट हुए तो बंदीगृह प्रकाशित हो गया जिससे वासुदेव जी की आंखें चमक उठी। उन्होंने श्री हरि को पुत्र रूप में प्रकट देखकर ब्राह्मणों को हजार गाय दान करने का संकल्प लिया और भगवान की स्तुति की ।
वासुदेव जी कहने लगे कंस ने मेरे छः पुत्रों और आपके भाइयों का वध कर दिया है अब आपके जन्म लेने का समाचार मिलते ही वह आप को मारने के लिए दौड़ा चला आएगा।
भगवान ने सबसे पहले उन दोनों को उनके पूर्व का स्मरण करवाया जब उन्होंने उन दोनों ने उन्हें पुत्र रूप में पाने के लिए तपस्या की थी। उसके पश्चात भगवान कहने लगे कि अगर आपको कंस का भय है तो आप नंद और यशोदा की पुत्री योग माया से मुझे बदल लाओ। उसने मेरी प्रेरणा से गोकुल में जन्म लिया है।
कारागार के द्वार चमत्कारी रूप से खुल गए और सभी पहरेदार गहन निद्रा में चले गए। वासुदेव जी श्री कृष्ण को टोकरी में रखकर गोकुल की ओर चल पड़े। यमुना नदी श्री कृष्ण के दर्शन और स्पर्श करना चाहती थी। श्री कृष्ण ने अपना पैर टोकरी से बाहर निकल दिया और श्री कृष्ण के चरणों का स्पर्श पाते ही नदी शांत हो गई और नदी ने वासुदेव जी को मार्ग दे दिया।
मां यशोदा को जब चेतना आई तो पुत्र को पाकर वह बहुत प्रसन्न हुई। उधर वासुदेव जी के वापस आते ही जेल के द्वार बंद हो गए और पहरेदार जाग गए। योग माया के रोने की आवाज सुनकर कंस वहां आया और उसने योग माया को मारना चाहा तो वह हवा में उड़ गई और उसने कंस को बता दिया कि तुम को मारने वाला गोकुल में पैदा हो चुका है। कंस ने देवकी और वसुदेव को कारागार से मुक्त कर दिया। कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए बहुत से राक्षसों को भेजा लेकिन श्री कृष्ण ने सभी का वध कर उनको मुक्ति प्रदान की। कंस ने सबसे पहले पुतना राक्षसी को भेजा , उसके पश्चात शकटासुर और तृणावर्त को श्री कृष्ण को मारने के लिए भेजा लेकिन श्री कृष्ण ने सबका वध कर अपने धाम पहुंचा दिया।
श्री कृष्ण ने मां यशोदा और नंद बाबा को बहुत सी बाल लीलाओं का आंनद दिया। मां यशोदा को ब्राह्मण दिखाना, मां यशोदा द्वारा रस्सी से बांधने पर यमलार्जुन वृक्षों का उद्धार करना। वृन्दावन की गलियों में माखन चुराना, गाय चराने जाना और कालिया नाग का दमन करना, गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाना यह सभी लीलाओं का आंनद दिया।
वृन्दावन में गोपियों का माखन चुराकर भाग जाना, उनकी मटकी फोड़ देना आदि बहुत सी लीलाएं की। श्री कृष्ण ने ब्रज धाम में राधा रानी संग भी बहुत सी लीलाएं की। राधा श्री कृष्ण की सखी और उपासिका थी। राधा रानी को कृष्ण वल्लभा कहा गया है। वह श्री कृष्ण की अधिष्ठात्री देवी है।
लेकिन जब कंस को पता चला कि नंद और यशोदा का पुत्र ही मेरा वध करेगा तो उसने अक्रुर जी को दोनों भाइयों को लेने भेजा। श्री कृष्ण और बलराम वृन्दावन छोड़कर मथुरा आ गए और श्री कृष्ण ने वहां कंस का वध कर पृथ्वी को उसके अत्याचारों से मुक्त करवाया। श्री कृष्ण ने कंस की कैद से मां देवकी और वसुदेव जी को मुक्त कराया और उग्रसेन को मथुरा का राजा बना दिया।
जन्माष्टमी पर पढ़ें श्री कृष्ण की आरती
आरती कुँजबिहारी की
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
गले में बैजंतीमाला,
बजावै मुरली मधुर बाला,
श्रवण में कुण्डल झलकाता,
नंद के आनंद नंदलाला,
गगन सम अंग कांति काली,
राधिका चमक रही आली,
लतन में ठाढ़े बनमाली,
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरधर श्यामा प्यारी की,
श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की,
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसैं,
देवता दरसन को तरसैं।
गगन से सुमन राशि बरसैं ,
बजै मुरचंग ,
मधुर मृदंग,
ग्वालिनी संग,
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की ।।
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
जहां से प्रगट भई गंगा,
कलुष कलिहारिणी गंगा।
स्मरण से होत मोह भंगा,
बसी शिव शीश,
जटा के बीच
हरै अघ-कीच,
चरण छवि श्री बनवारी की,
श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की। ।
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू,
बज रही बृंदावन बेनू।
चहुं दिशि गोपी ग्वालधेनु ,
हंसत मृदु मंद चांदनी चंद।
कटत भव फन्द,
टेर सुनु दीन भिखारी की,
श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की ।।
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की
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